Wednesday 14 September 2016

हिंदी है boss....... कोई तोप नहीं !

लो गया हिन्दी दिवस - 14 सितंबर जब बार-बार बस एक ही आवाज सुनने को मिलतीहमारी हिंदी ’; तो हुआ यूं कि  कल जब मैं गरमगरम   चाय के साथ उस घिसे -पीटे   रूटीन को फॉलो कर , कुछ नया खोजने की कोशिश  कर रही थी तभी नजर एक लेख पर गई; हालाँकि  चर्चा वही कुछ पुराना था कि संविधान ने हिंदी को  14 सितंबर 1949 को  राजभषा के  रूप मे स्वीकारा ;भारत का तीन चैथाई हिस्सा हिन्दी से घिरा है लोग आपस मे इसलिए जुड़ पाए क्योकि वो  आपसी बोली को समझ पा रहे थे ; बस फिर क्या था आपके तरह मेरी भी हंसी छूट पडी और कहा - क्या है ये सब ? भई साफ सी बात है आज का दौर show -off  का है; जो दिखेगा वही बिकेगा ! मतलब अंग्रेजी नजर तभी उसके बगल वाले  ब्लाॅग पर गई जिसमे  कुछ अंजान लोगो  ने इस मुददे  पर खुल कर बात की थी उनका कहना था कि - हिन्दी आज कही गुम सी हो गई है और जो दिखता ही नही वो बिकेगा कहा से?
    तो बस  कुछ नया लिखने मे  जुट गई जिसके लिए कुछ लोगो  से बात भी करनी पडी तो जनाब ! जवाब कुछ यू  निकल कर आया - कि आज हर जगह अंग्रेजी का बोलबाला है जो इसको समझ जायेगा  वो बॉस वरना   ठन -ठन गोपाल  दूसरी भाषा मे  जिसे  गवार कहा जाता है , बचपन से ही बच्चो  को अंग्रेजी भाषा सिखने पर इतना जोर दिया जाता है कि मानो  वही हमारी राजभाषा हो, काॅलेज का पहला दिन हो या आज की जाॅब प्रोफाइल जिसमे  साफ-साफ़  लिखा होता है fluent in english  वो ना आये तो समझ लो भई कुछ ना हो सकता आपका   शायद    यही वजह है विदेशी  भाषा  सिखाने का कारोबार इतना तेजी से बढा है और बढे भी क्यो ना अपनी भाषा  को बालने मे इतना  शर्मायेंगे  तो यकीनन राजभाषा  तो गैर लगेगी ही। 
               मगर इसके  पीछे की वजह क्या है- वजह हम सब है. हम अपनी भाषा से ज्यादा तवुज्जा एक विदेषी भाषा  को दिए बैठे है जिसमे  हमारी सरकार भी कुछ यू शामिल है  - राजभाषा  अधिनियम 3  के तहत - सभी सरकारी दस्तावेज अंग्रेजी मे  लिखे  जायेगे और जरूरत पडने  पर उसे हिन्दी मे  बदला जायेगा जबकि सारे दस्तावेज हिन्दी मे  लिखे  जाने  थे  और जरूरत पडने पर उसे अंग्रेजी मे  बदलना था।

खैर ! समझ गया कि क्यों  हिन्दी दिवस  को एक अनोखा दिन बना दिया मानो श्रद्धांजलि दे  रहे हो  कभी   फ्रेंच दिवस या अंग्रेजी दिवस केबारे मे नहीं   सुना। आपने सुना   क्या ? आखिर जरूरत क्यो पडी क्योकि अपने ही देश   मे  अपनी भाषा कुछ गैर सी लगने लगी है तो बस साफ भाषा मे  इतना कहना चाहती हूं कि किसी गैर की दुकान का  प्रमोशन  ना करे अपनी दुकान को लल्लनटाॅप बनाए मतलब अपनी भाषा को तवुज्जा दीजिए 
 क्योकि असली ख़ुशी केवल  अपनी भाषा मे  मिलती है, गैरो की नहीं

   


1 comment:

  1. Here comes,yet another blockbuster frm Sonali. Very impressive style, 100% genuine. Bravo grl. Go hii..!!!

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