Thursday 8 September 2016

भूलो मत -तुम एक मुसाफिर हो

आज एक अजीब सा एहसास हुआ जब किसी अपने ने कहा कि मुझे पता है - तुम अपनी मंजिल तक जरूर पहुंचोगी । ये सुनकर  मैंने उसकी आंखो में देखा तो मानो मेरी आंखे शर्म  से भीग चुकी थी़ ; आखिर ऐसा क्या नजर आया था।जो वो चेहरा मुझे बार-बार सोचने पर मजबूर कर  रहा था; सोचती रही शाम   से रात हो चुकी थी ; दिल और दिमाग दोनो ही आपस में लड रहे थे क्या करु? कुछ समझ नही आ रहा....... 
       तभी करवट बदली और अपने सपनो मे  जा पहुंची जहां एक तरफ मेरा आज धुंधला सा  दिख रहा ,वहीें दूसरी ओर  मेरा बचपन जो उजालो  से चमक रहा है, मन मे  सवाल आया ऐसा क्यों  ? सवाल पूछा ही था कि एक मस्त-मौला अंदाज मे  मुझे मेरा बचपन नजर आया,उसी  जिददी  लडकी का  जो बेखौफ से जीना जानती थी शायद  दुनिया का डर नहीं था उसे कि- लोग क्या कहते है और क्या कहेगे ,सपने देखती और उन पर विश्वास रखती सच कह तोह बस खुश  थी  वो। ...... 
           अचानक वो दिन नजर आ गया जब बचपन की दौड मे , मैं अक्सर  हार जाया करती  ,कभी-कभार चोट भी आ जाती ;तो बस फिर क्या था ; मां का डर और मेरी जिदद आपस मे  टकराने लगे थे; मां को डर था कि किसी दौड मे  मुझे चोट ना आ जाये ;हालांकि मुझे पता होता था कि शायद  आज भी उस दौड़ मे , मैं हार जाऊ  जिसमें मुझसे बडी उर्म के लोग शामिल  थे मगर फिर भी दिल  मे  एक उम्मीद  होती  और शायद  उसी उम्मीद   से मां को गले लगाकर कहती - तुम देखना इस बार नहीं गिरूगी ;इस बार जीत कर जाऊंगी  मैं ............और कभी गिर भी गई तो खुद उठती और हंसकर कहती - अरे नहीं गिरी   ; अभी खेल रही हूं मैं....... 
 जीत की आस जैसे टूटती ही नहीं थी; शायद  वो उम्मीद बचपन से आज तक लिए बैठी हूं; अक्सर लोग बचपन मे  कुछ सपने देखते है  कुछ उसको पूरा करने की ठान लेते है तो कुछ उस पर red signal  का टैग लगा देते है और पूछने पर कहते है - अरे अब मैं बडा हो चुका हूं।अब मैं mature हूँ , इसमें  मेरी ख़ुशी  तो है मगर दुनिया इसकी value  नहीं करती ; तो क्या कोई mature  तब बनता है जब वो खुद की ख़ुशी  से ज्यादा इस समाज से डरता है? जब खुद की कामयाबी का जशन  ना मनाकर उसे  दूसरों  के आगे बढने का डर सताता है? शायद  उसे फर्क नहीं पडता कि उसकी मंजिल उसे बहुत पहले मिल चुकी है मगर वो तब भी उस भीड मे   घूमता रहता  है ,इसलिए नहीं कि कोई दूसरी मंजिल उसकी राह देख रही है; क्योंकि दुनिया उस भीड मे  भाग रही हैं इसलिए वो बस चलता जाता है..... उसे सुकून  नहीं ; की वोह एक पल  ठहरे और एक नजर उस मंजिल की ओर डाले जो  उसे मिल चुकी है....  बस वोह तोह उस समाज की  भीड़ मे  चलना पसंद करता है। ....
      तब जाकर समझ आया कि आखिर लोग क्यों कहते है कि- मैं अभी  mature  नहीं हुई; क्योंकि  मैं आज भी अपने सपनो  को जी रही हूं ,आज भी कोई विश्वास  की डोर उन सपनो  से बंधी हुई है जिसका सफर; वो जिददी  लडकी हर-रोज तय करती हैं; तभी अचानक आँख  खुली और मैं झट से बैठ गयी। समझ आया कि मेरे सारे सवालों के जवाब बस एक ही शब्द  में छिपा हैं -  विश्वास  
       मानो वो जिददी  लडकी मुझसे बार-बार कह रही हो- रूको मत ! फिर खुद पर विश्वास  करो,एक बार फिर से लड जाओ - खुद के लिए और उन सपनो के लिए जो तुमने हर-रोज सजाये हैं  क्योकि मैं तुमसे जुडी हूं; तुम रूकी तो  हमारे सपने  बिखर जायेगें।
        भूलो मत -तुम एक मुसाफिर हो जो अपनी मंजिल की तलाश  मे  इधर-उधर भटक रहा है उस मंजिल तक पहुंचने में हमने  बहुत सी चोटे खायी है फिरअब क्यों उम्मीद  छोड़ना।  तो बस अब कुछ भी हो जाये तुम रूकना मत ! क्योंकि अब हमारी मंजिल ज्यादा दूर नहीं।।।।।।।









1 comment:

  1. One of the best piece of content I ever came across.Original, genuine n written frm heart. It connects directly wth u, ur own journey n struggles n hw u came ovr those difficulties..
    Bravo Sonali..amazingly content n blog. Highly appreciate it. Waiting for ur next blog.
    Yours sincere follower
    Aakash Dubey.

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